ब्लाग बनाया। अरमान से। सोचा था खूब लिखूंगी। पर पता नहीं कैसे छूट गया। जैसे समय कोई डोर हो पतंग की बस फिसल गई और मैं कटे कनकौवे की तरह ढुलमुल हवा में तैरती चली जा रही हूं।
आखिर मैं क्या करती रही कि मुझे समय नहीं मिला। सच बात यह है कि समय था। लेकिन उस खाली समय को किसी और के हिसाब से बिताना था। पता नहीं कितनी जोड़ा मर्द आंखे हैं जो हम खातून के समय को अपने ही ढंग से कंट्रोल करती रहती हैं।
बड़ा पापुलर जुमला है। वक्त पर किसी का जोर नहीं। ट्रकों के पीछे अक्सर लिखा देखा है वक्त का हर शै गुलाम। लेकिन यहां देखिए पुरूष मुकर्रर करता है कि औरत, समय को कैसे बिताए इस तरह समय के बेलगाम घोड़े की रास थाम लेता है। इस नजरिए से सर्वशक्तिमान वक्त की व्याख्या मैंने तो कहीं नहीं देखी है।
नीलोफर जरा सोचो इक्कीसवीं सदी में किसका वक्त चल रहा है।
Listen to the sound of lightning on Mars
1 hour ago
