Monday, September 29, 2008

वक्त का हर शै गुलाम

ब्लाग बनाया। अरमान से। सोचा था खूब लिखूंगी। पर पता नहीं कैसे छूट गया। जैसे समय कोई डोर हो पतंग की बस फिसल गई और मैं कटे कनकौवे की तरह ढुलमुल हवा में तैरती चली जा रही हूं।



आखिर मैं क्या करती रही कि मुझे समय नहीं मिला। सच बात यह है कि समय था। लेकिन उस खाली समय को किसी और के हिसाब से बिताना था। पता नहीं कितनी जोड़ा मर्द आंखे हैं जो हम खातून के समय को अपने ही ढंग से कंट्रोल करती रहती हैं।



बड़ा पापुलर जुमला है। वक्त पर किसी का जोर नहीं। ट्रकों के पीछे अक्सर लिखा देखा है वक्त का हर शै गुलाम। लेकिन यहां देखिए पुरूष मुकर्रर करता है कि औरत, समय को कैसे बिताए इस तरह समय के बेलगाम घोड़े की रास थाम लेता है। इस नजरिए से सर्वशक्तिमान वक्त की व्याख्या मैंने तो कहीं नहीं देखी है।

नीलोफर जरा सोचो इक्कीसवीं सदी में किसका वक्त चल रहा है।

8 comments:

विजय ठाकुर said...

बिल्कुल सही बात है हर शै वक़्त का गुलाम जरूर होता है लेकिन वक़्त को पलटने का माद्दा भी इंसान में ही होता है। सिर्फ़ बहते रहना ही हमारी नियति नहीं है।
उम्मीद है वक़्त को मात देकर आपका लिखना मुकम्मल जारी रहेगा।

शुभकामनाएँ।

संतोष अग्रवाल said...

कतरा-कतरा मिलती है
जीने दो।
जिन्दगी है बहने दो।
आपने ख़ुद ही कहा है...अब असमंजस कैसा? आप अच्छा सोचती हैं..अच्छा लिखती है...जारी रखिये..
अगर मुनासिब समझे तो वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें. टिप्पणी में आसानी रहती है. :)

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

अजी, अपने आलस को दूसरों पर दोष मढ़कर मत छिपाइए। आप इत्ती कमजोर तो नहीं लगती?

Sanjeet Tripathi said...

खिड़की मे खड़ी एक नन्ही लड़की!
बढ़िया परिचय!
शुभकामनाओं के साथ स्वागत!

अभिषेक मिश्र said...

Achi shuruaat hai. Lekin khidki se bahar ki duniya ko bhi dekhne ki koshish kijiyega, aur bhi khoobsoorat hai, Aur samay kisi purush aur stri ke liye alag nahi hota, ise khud manage karna hota hai.Khushamadeed.

प्रदीप मानोरिया said...

you are most welcome in blog world . plz visit my blog too to enjoy hindi kavita

बवाल said...

बहुत बेहतर ! बहुत अच्छी पोस्ट ! बधाई ! जारी रखिये !

नीलोफर said...

हौसला अफजाई के लिए आप सब का बहोत-२ शुक्रिया.