Wednesday, September 17, 2008

पहला दिन


कतरा-कतरा मिलती है
कतरा-कतरा मिलती है
जीने दो।
जिन्दगी है बहने दो।

3 comments:

शेरघाटी said...

इक बेचैनी है, इक छटपटाहट है aapke अन्दर.
और इसे अभिव्यक्त करने का आपका प्रयास अच्छा है.
लिखना ही हमें आशा बंधाता है, इक नए सवेरे का.

कभी फ़ुर्सत मिले तो मेरे भी दिनरात देख लें.link है:

http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com
http://saajha-sarokaar.blogspot.com
http://hamzabaan.blogspot.com

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

कतरा-कतरा बहती है
बूंद-बूंद टपकती है !
जिन्दगी क्या है
रगों में बहती है !
गौर से सुनो ना
क्या कहती है !?

Bahadur Patel said...

achchhi panktiyan.